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नेतृत्व की शैली व स्वरूप || Leadership style and nature

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किसी भी उपक्रम या शैक्षिक संस्था की सफलता और असफलता का मुख्य कारण उसके नेतृत्व के स्वरूप या शैली से है।अतः कोई नेतृत्व चाहे वह प्रबंधक हो या व्यवस्थापक किस परिस्थिति में किस शैली का प्रयोग करें जिससे उसे उस संस्था या उपक्रम में सफलता प्राप्त कर सके।अतः शैक्षिक संस्था के उचित संचालन के लिए विभिन्न दिशाओं में विभिन्न शैलियों की आवश्यकता होती है।

The main reason for the success and failure of any enterprise or educational institution is due to the nature or style of its leadership.Therefore, any leadership, whether it is a manager or administrator, should use which style in which situation ,So that he can get success in that institution or undertaking.Therefore, for the proper operation of the educational institution, different styles are required in different directions.

नेतृत्व की शैलियाँ या स्वरूप निम्न हैं (Following are the styles or forms of leadership)-

1.अभिप्रेरणात्मक स्वरूप व शैली- यह शैली प्रचलित एवं महत्वपूर्ण है।यह शैली अनुयायियों को विभिन्न प्रकार की प्रेरणा देकर उनसे काम लेने की विधि का उल्लेख करता है। इस तरह की प्रेरणा धनात्मकऔर त्रणात्मक दोनों तरह की होती हैं।यहां धनात्मक प्रेरणा से तात्पर्य ठीक आर्थिक तथा अनार्थिक निर्णय अनुयायियों को देना जिससे वे कार्य को संपन्न कर सकें।ऋणात्मक अभिप्रेरणा की विधि में नेता कर्मचारियों को डरा-धमकाकर या कार्य से हटाने,वेतन में कमी आदि की धमकी देकर अभिप्रेरित करता है।

1.Motivational form and style -This style is popular and important.This style describes the method of employing the followers by giving them different types of inspiration.Such inspiration there are both positive and negative types.Here positive motivation refers to giving right economic and non-economic decisions to the followers so that they can complete the work.In the method of negative motivation, the leader intimidates the employees or works with them.Motivates now by threatening removal,reduction in salary etc.
2.शक्ति स्वरूप शैली- यह शैली नेतृत्व का दूसरा बहु प्रचलित स्वरूप व शैली है। इसके अंतर्गत नेतृत्व की तीन स्वरूप हैं।
.निरंकुश स्वरूप- नाम से ही प्रतीत होता है कि इस स्वरूप में नेता सभी अधिकारी अपने पास केंद्रित रखता है एवं सारे फैसले स्वयं ही लेता है। निर्णय की क्रिया विधि के लिए अनुयायियों को आदेश देता है।अनुयायियों का कार्य केवल यह है कि वह समस्त आदेशों का अनुपालन करें।
.प्रजातंत्र के स्वरूप-यह निरंकुश स्वरूप से बिल्कुल विपरीत है।यह स्वरूप नेतृत्व का आधुनिक तथा सर्वमान्य स्वरूप है।इसमें नेता अपने अधिकारों का विकेंद्रीकरण करता है।नीतियों को सभी अनुयायियों से विचार- विमर्श करने के पश्चात ही उसकी सहमति से निर्माण करता है। इसके बदले में नेता उसकी उनकी विभिन्न आवश्यकताओं तथा सुविधाओं का पूरी तरह से ध्यान रखते हैं।यह स्वरूप ज्यादा से ज्यादा लोकप्रिय होता जा रहा है,क्योंकि यह प्रजातंत्र की भावना से ओतप्रोत है।नेता समूह के सदस्यों पर आश्रित रहता है,इसे इस स्वरूप को समूह केंद्रित भी कहा गया है।
.निर्बाध स्वरूप- यह स्वरूप नेतृत्व के स्वरूप का तीसरा हिस्सा है।इसके अंतर्गत अनुयायियों को उनके स्वयं के भरोसे छोड़ दिया जाता है।वह स्वयं ही लक्ष्य निर्धारित करते हैं।एवं उससे संबंधित निर्णय भी लेते हैं।अन्य शब्दों में,यह कह सकते हैं कि नेता केवल मध्यस्थ तथा समन्वयक के कार्य करता है।इस प्रकार के नेतृत्व के स्वरूप का उपयोग तभी होना चाहिए जब अनुयाई योग्य तथा अनुभवी हों।इस स्वरूप को व्यक्ति -केंद्रित भी कहते हैं।
2.Shakti Format Style This style is the second most popular form and style of leadership.There are three types of leadership under this.
A.Autocratic form- As the name suggests, in this form the leader keeps all the officials focused and takes all the decisions himself.Gives orders to followers for the procedure of decision.
The only task of followers is to obey all orders.
b.Type of Democracy – This is the exact opposite of the autocratic form.This form is the modern and universally accepted form of leadership.In this the leader decentralizes his authority.To discuss the policies with all the followers.Only after that builds it with his consent.In return, the leader takes full care of their various needs and facilities.This form is becoming more and more popular, because it is imbued with the spirit of democracy.The leader is dependent on the members of the group, this form is is also called group centric.
C.Uninterrupted Pattern-This form is the third part of the leadership pattern.Under this the followers are left to their own self. They set their own goals.And also take decisions related to them.In other words, it can be said that the leader only acts as a mediator and coordinator.This type of leadership should be used only when the followers are qualified and experienced.This form is also called person-centred.
3.पर्यवेक्षीकीय स्वरूप व शैली- इस स्वरुप के अंतर्गत नेता अपने सामने विशेष उद्देश्य अथवा लक्ष्य रखकर नेतृत्व करता है।यदि नेता,कर्मचारी की ओर अधिक महत्व देता है तो यह स्वरूप कर्मचारी प्रधान कहलाता है।इसके भी दो निम्न स्वरूप होते हैं।
.कर्मचारी प्रधान स्वरूप- इस स्वरुप के अंतर्गत नेता अपने अनुयायियों की कार्य दशाएँ, सुविधाएँ तथा कार्य के वातावरण को उचित रूप से सुधारने आदि को अधिक महत्व देते हैं।इससे नेता की ओर अनुयायियों का झुकाव हो जाता है।और वह लोकप्रिय बन जाता है।नेता कर्मचारियों के लिए स्वस्थ तथा अनुकूल वातावरण तैयार करने हेतु सदैव तत्पर रहता है।वह मानवीय भावनाओं को ग्रहण कर उनकी समस्याओं को समझता है तथा हल करता है।
.शक्ति उत्पादन प्रधान स्वरूप-यह स्वरूप उपक्रम अथवा संस्था के हित की नजरिए से बहुत ही अच्छा स्वरूप है, किंतु कर्मचारियों के दृष्टिकोण से उचित नहीं है।यह स्वरूप उत्पादन अभीमुखी होता है।अतः कर्मचारियों के मानवीय दृष्टिकोण को ध्यान में नहीं रखता है।प्रायः नेता उत्पादन वृद्धि पर ही ध्यान देता है।और उसके लिए कर्मचारियों को निरंतर कार्य करने हेतु प्रेरित करने तथा नई-नई तकनीकी अपनाने पर जोर देता है।

3.Supervisory nature and style- Under this pattern, the leader leads with a specific objective or goal in front of him. If the leader gives more importance to the employee, then this form is called employee-oriented.There are two following formats.
A.Employee-oriented pattern- Under this form the leader gives more importance to his followers to improve their working conditions, facilities and work environment properly etc.This leads to the inclination of the followers towards the leader.And he becomes popular.The leader is always ready to create a healthy and conducive environment for the employees. He understands and solves their problems by accepting human feelings.
b.Power generation prime form - This form is very good form from the point of view of the interest of the undertaking or organization, but is not proper from the point of view of the employees.This form is production oriented.Does not take the approach into consideration. Often the leader focuses only on the production increase. And for that, he emphasizes on motivating the employees to work continuously and adopting new technology.

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
edudurga.com

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