भाषा जीवित प्राणियों के भाव प्रकाशन का एक मुख्य साधन है।मनुष्य जिस माध्यम से अपने विचारों एवं भावों को अभिव्यक्त करता है या आदान-प्रदान करता है, इस प्रक्रिया को ही भाषा कहा जाता है।भाषा भाव, विचार तथा अनुभवों को व्यक्त करने और विचार विनिमय करने का एक प्रमुख साधन है।इस संसार में रहने वाले विभिन्न प्राणी विभिन्न प्रकारों से अपने भावों और विचारों को व्यक्त करते हैं।व्यक्ति अपने पास उपलब्ध साधनों जैसे– हाथ,पैर ,कान सिर,कान आदि से अपने मन की इच्छाओं को व विचारों को समक्ष प्रकट करते हैं।साथ ही हम कह सकते हैं कि अंग- प्रत्यंग के संचालन से भी भावों की अभिव्यक्ति संभव है।
अपनी भावनाओं को व्यक्त करने हेतु व्यक्ति जिन व्यक्त ध्वनि संकेतों को नित्य-व्यवहार के लिए स्वीकार करता है,उसे भाषा कहा जाता है।भाषा विचारों को व्यक्त करने वाली ध्वनियों और वाक्यों का एक समुदाय होता है। स्वयं को व्यक्त करने हेतु मनुष्य ध्वनि संकेतों तथा अंग-प्रत्यंगों के संचालन का आश्रय लेता है,यही भाषा के अंतर्गत आता है। भाषा के बिना मनुष्य का जीवन अंधकार में रहता है। भाषा के ज्ञान से मानव का जीवन-मार्ग प्रकाशमय हो जाता है।भाषा के उचित प्रयोग के माध्यम से मनुष्य के जीवन में चार चांँद लग जाते हैं।
Language is a main means of expression of living beings. The process itself is called language. Language is a major means of expressing feelings, thoughts and experiences and exchanging ideas.Different creatures living in this world express their feelings and thoughts in different ways.With means like – hands, feet, ears head, ears etc., they express their thoughts and desires in front of them.Also we can say that the expression of feelings by the operation of limbs.
The expression of sound signals used by a person to express his feelings is called language. Contains a community of sounds and sentences.To express himself, man takes the refuge of the operation of sound signals and organs, this is what comes under language. Without language the life of man remains in darkness. Knowledge of language makes the way of human life bright.Through proper use of language, four moons are added to the life of man.
1.महर्षि पतंजलि के अनुसार– "भाषा वह व्यवहार है जिसमें हम वर्णनात्मक अथवा व्यक्त शब्दों के द्वारा अपने विचारों को प्रकट करते हैं।"
2.आचार्य दंडी के अनुसार– "तीनों लोकों में अंधकार छा जाता, यदि शब्द रूपी ज्योति (भाषा) से यह सृष्टि प्रदीप्त न होती।"
3.डॉक्टर बाबूराम सक्सेना के अनुसार– "जिन ध्वनि चिन्हों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय करता है, उसको समष्टि रूप से भाषा कहते हैं।"
4.सुमित्रानंदन पंत के अनुसार– "भाषा संचार का नाम व चित्र है, ध्वनिमय स्वरूप है, विश्व की ह्रदय-तंत्री झंकार है।इनके स्वरों में भाषा अभिव्यक्त होती है।"
5.स्वीट के अनुसार– "ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों का प्रकटीकरण ही भाषा है।"
6.हरलॉक के अनुसार– "भाषा से तात्पर्य विचारों तथा अनुभूतियों का अर्थ व्यक्त करने वाले उन सभी साधनों से है जिनमें संज्ञान या विचारों के आदान-प्रदान के सभी पक्ष,जैसे– लिखना ,बोलना, संकेत, चेहरे की अभिव्यक्ति, हावभाव, मूक अभिनय एवं कला इत्यादि सम्मिलित हैं।"
1.According to Maharishi Patanjali– "Language is the behavior in which we express our thoughts through descriptive or expressive words."
2.According to Acharya Dandi– "There would have been darkness in all the three worlds, if this creation had not been illuminated by the word form jyoti (language)."
3.According to Dr. Baburam Saxena– "The sound signs by which human beings interact with each other are collectively called language."
4.According to Sumitranandan Pant– "Language is the name and picture of communication, the sound form, the heart-nerve chime of the world.Language is expressed in their voices."
5.According to Sweet– "Language is the expression of ideas by phonetic words."
6.According to Harlock– "Language refers to all those means of expressing the meaning of thoughts and feelings in which all aspects of cognition or exchange of ideas, such as writing, speaking, gestures, facial expressions, etc. expression, gesture, silent acting and art etc."
मनुष्य के जीवन को विकासोन्मुखी बनाने के लिए प्रत्येक क्षण भाषा की अत्यधिक आवश्यकता होती है।मनुष्य के जीवन में यदि भाषा का जन्म नहीं हुआ होता तो उसका जीवन पशुओं के समान गया-बीता हो जाता।संपूर्ण संसार ही सूना हो जाता।भाषा ने संसार के सूनेपन को नई जिंदगी प्रदान की है।
पं.सीताराम चतुर्वेदी का कहना उपयुक्त ही है– "भाषा के आविर्भाव से सारा मानव गूँगों की विराट बस्ती होने से बच गया।भाषा की आवश्यकता तथा महत्व को निम्नांकित तथ्यों से आंँका जा सकता है–
1.मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए– जब मनुष्य अपनी भावनाओं और विचारों को अभिव्यक्त करता है,उस समय उसका व्यक्तित्व दिखाई देता है।भाषा अभिव्यक्ति का एक सशक्त साधन है।मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास हेतु भाषा सहायक सिद्ध हुई है।भाषा के महत्व के संबंध में रायबर्न महोदय का कहना है– "भाषा ज्ञान के बिना बौद्धिक विकास ज्ञान-वृद्धि,आत्माभिव्यक्ति और रचनात्मक शक्ति का विकास असंभव है।मनुष्य का सर्वांगीण विकास ही शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य होता है और इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु भाषा का योगदान अति महत्वपूर्ण होता है।
2.सुसंस्कृत नागरिक निर्माण करने हेतु– मनुष्य के बौद्धिक विकास के साथ-साथ अच्छे नागरिक के गुणों का पोषण होना भी बेहद जरूरी होता है। भाषा न केवल मनुष्य के बौद्धिक विकास में सहायता प्रदान करती है, बल्कि उसका नैतिक, चारित्रिक और सामाजिक विकास करके अच्छा नागरिक बनाने में भी सहायक सिद्ध होती है।केवल भाषा के द्वारा ही मनुष्य एक दूसरे के भाव व विचारों को अच्छी तरह समझ सकता है।माइकल वेस्ट ने अपनी पुस्तक "लैंग्वेज ऑफ एजुकेशन" में लिखा है– "भाषा का महत्व केवल बौद्धिक विकास में ही नहीं है,बल्कि चारित्रिक विकास में भी है।"
3.विचार विनिमय के लिए– भाषा विचार-विनिमय का एक सशक्त साधन होता है।केवल संकेतों से विचार-विनिमय नहीं होता है बल्कि विचारों का आदान-प्रदान भाषा के सहारे सुगमता से किया जाता है।वस्तुतः भाषा और विचार का अत्यधिक निकट का संबंध माना गया है।हम वार्तालाप करके, लिखकर तथा पढ़कर सरलता से विचार-विनिमय कर सकते हैं।इसलिए भाषा को विचार-विनिमय का सबसे उत्तम साधन माना गया है।
4.ज्ञान की वृद्धि के लिए– ज्ञान की वृद्धि भी भाषा की मदद से ही पूर्ण होती है।मनुष्य अपने जीवन में विभिन्न प्रकार का ज्ञान प्राप्त करता है उन सभी का माध्यम भाषा ही होता है। भाषा के बिना शिक्षा और ज्ञान प्राप्त करना संभव नहीं होता है। भाषा की सहायता से ही मदद से ही शब्द भंडार में वृद्धि होती है।भाषा से मानव-मानव में संबंध प्रगाढ़ होते हैं। शिक्षा और ज्ञान की वृद्धि हेतु प्रत्येक मनुष्य को भाषा की शरण में आना अनिवार्य माना जाता है।
Language is very much needed at every moment to make the life of man development oriented.It would have passed away like it.The whole world would have become deserted. Language has given new life to the desolation of the world.
Pt.Sitaram Chaturvedi is apt to say– "With the emergence of language, all human beings have been saved from being a vast colony of dumb people.The need and importance of language can be judged from the following facts-
1.For the development of man's personality– When a man expresses his feelings and thoughts, his personality is visible at that time.Language is a powerful means of expression.For the development of man's personality Language has proved to be helpful.Regarding the importance of language, Rayburn sir says– "Intellectual development, knowledge-enhancement, self-expression and development of creative power is impossible without language knowledge. Language development of human personality.
2.To build a cultured citizen– Along with the intellectual development of man, it is also very important to nurture the qualities of a good citizen.Language not only helps in the intellectual development of man, but also helps in making him a good citizen by developing his moral, character and social. Michael West wrote in his book "Language of Education"– "The importance of language is not only in intellectual development, but also in character development."
3.For exchange of ideas– Language is a powerful means for exchange of ideas.Thoughts are not exchanged only by signs, but ideas are exchanged with the help of language It is done easily. In fact, language and thought are considered to be very closely related. We can easily exchange ideas by talking, writing and reading.
4.For the growth of knowledge– The growth of knowledge is also accomplished with the help of language.Man receives different types of knowledge in his life, the medium of all of them is language. Without language it is not possible to get education and knowledge. It is considered mandatory for every human being to take refuge in language.
मनोभाषाविज्ञानियों ने अपने अध्ययनों के आधार पर भाषा की पांँच घटकों का उल्लेख किया है –
1.ध्वनिविज्ञान (Phonology)– प्रत्येक भाषा की अपनी ध्वनि प्रणाली (phoneme) होती है। इनसे संयुक्त सार्थक शब्द निर्मित किए जाते हैं।
2.रूपविज्ञान (Morphology)– इसका आशय उन नियमों से है जिनके द्वारा ध्वनियों के आधार पर सार्थक शब्दों का निर्माण किया जाता है।
3.शब्दार्थ विज्ञान (Semantics)– इसका आशय शब्दों एवं वाक्यों के माध्यम से अर्थ व्यक्त करने से है।जैसे, कुत्ता सेब,गाड़ी आदि।
4.वाक्यविन्यास (Syntax)– इसका तात्पर्य भाषा की संरचना से होता है।ये ऐसे नियम हैं जिनके आधार पर शब्दों को संयुक्त करके वाक्यांश या वाक्य बनाए जाते हैं।
5.प्रैगमैटिक्स (Pragmatics)– इसका तात्पर्य ऐसे नियम या ज्ञान से है जिसके आधार पर भाषा का संप्रेषण हेतु प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाता है।
Psychologists on the basis of their studies have mentioned five components of language –
1.Phonology– Every language has its own phoneme.Compound meaningful words are formed from these.
2.Morphology– It refers to the rules by which meaningful words are formed on the basis of sounds.
3.Semantics– It means to express meaning through words and sentences. For example, dog apple, cart etc.
4.Syntax– It refers to the structure of the language.These are the rules on the basis of which words are combined to form phrases or sentences.
5.Pragmatics– It refers to the rules or knowledge on the basis of which language is used effectively for communication.
भाषा की विशेषताएंँ निम्नांकित हैं–
1.भाषा विचार व्यक्त करने का एक सांकेतिक साधन होता है।
2.भाषा कई तरह के विचारों से संबंधित होता है।
3.भाषा पैतृक संपत्ति नहीं वरन् एक अर्जित या ग्रहण की जाने वाली संपत्ति है।
4.भाषा की कला अनुकरण (नकल) द्वारा ग्रहण की जाती है।
5.प्रत्येक भाषा की अपनी-अपनी सीमा होती है और अलग संरचना होती है।
6.भाषा सभ्यता तथा संस्कृति का एक विशेष हिस्सा भी होती है।
Language Features–
1.Language is a symbolic means of expressing ideas.
2.Language is related to many types of ideas.
3.Language is not an ancestral property but a property to be acquired or acquired.
4.The art of language is acquired by imitation.
5.Each language has its own limits and different structure.
6.Language is also a special part of civilization and culture.
विचारों के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं,शाब्दिक व अशाब्दिक विचार, जिनका विवरण निम्न प्रकार से है–
(1).शाब्दिक विचार– ये विचार उन सूचनाओं से संबंध रखते हैं जो शाब्दिक रूप में भेजे जाते हैं।शाब्दिक विचार निम्न प्रकार के होते हैं–
i.मौखिक विचार– जिनका आदान-प्रदान बोलकर या सुनकर किया जाता है वे मौखिक विचार के अंतर्गत आते हैं।जैसे– बालकों का आपस में वार्तालाप करना।
ii.दृष्टि विचार– ऐसे विचार जिन विचारों को बालक देखकर समझता है वे दृष्टि विचार होते हैं।जैसे– पोस्टर और चार्ट आदि।
iii.मौखिक दृष्टि विचार– ऐसे विचार जिन्हें बालक देख और सुन तो सकता है किंतु अपनी प्रतिक्रिया देने में असमर्थ होता है।जैसे– टीवी देखना आदि।
iv.लिखित विचार– ऐसे विचार जिन्हें बालक पढ़कर अथवा लिखकर अपने विचार व्यक्त करता है और समझता है।जैसे– चिट्ठी लिखना एवं समाचार पत्र पढ़ना।
(2).अशाब्दिक भाषा– ऐसी भाषा जिसमें न तो बालक मौखिक रूप से कुछ बोलता या सुनता है और न ही लिखता पढ़ता है।
i.शारीरिक भाषा– ऐसी भाषा जिसमें शरीर के भागों के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान किया जाता है शारीरिक भाषा के अंतर्गत आती है।जैसे– हाथ हिलाना, उंगली दिखाना।
ii.कूटभाषा– कई बार विचारों को व्यक्त करने हेतु कई प्रकार के कूट प्रयोग में लाए जाते हैं जिनका कोई शाब्दिक अर्थ नहीं निकलता।इनका अर्थ पहले से ही सुनिश्चित होता है।
There are mainly two types of thoughts, verbal and nonverbal thoughts, whose description is as follows –
(1).Verbal thoughts–These thoughts are related to the information which is sent in verbal form.Verbal thoughts are of the following types–
i.Verbal thought– Those which are exchanged by speaking or listening, they come under verbal thought.For example- children talking to each other.
ii.Visual Thoughts– Such ideas which the child understands by seeing are visual thoughts. Like – Posters and charts etc.
iii.Verbal Vision Thoughts– Thoughts that the child can see and hear but is unable to give his/her own response.Like– Watching TV etc.
iv.Written Thoughts– Thoughts that the child expresses and understands by reading or writing.Such as writing letters and reading newspapers.
(2).Nonverbal language– A language in which the child does not speak or hear or write or read.
i.Body language–A language in which thoughts are exchanged through body parts comes under body language.eg – handshake, finger pointing.
ii.Code language– Sometimes many types of codes are used to express ideas which do not make any literal meaning. Their meaning is already fixed.
मनुष्य को संसार में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।इसका कारण है– उसका निरंतर चिंतनशील होना।जीवधारियों में मनुष्य ही सबसे अधिक चिंतनशील है और यही चिंतन मनुष्य और उसके समाज के विकास का महत्वपूर्ण कारण है। शिक्षा द्वारा मनुष्य की चिंतन शक्तियों को विकास की ओर ले जाया जाता है।
मनुष्य के समक्ष कभी-कभी किसी समस्या का उपस्थित होना स्वभाविक होता है।ऐसी स्थिति में वह उस समस्या का समाधान करने के उपाय सोचने लगता है।वह इस बात पर विचार करना प्रारंभ कर देता है कि समस्या का किस प्रकार समाधान किया जा सकता है।इस प्रकार सोचने या विचार करने की क्रिया को ही 'चिंतन' कहा जाता है। अन्य शब्दों में, चिंतन विचार करने की वह मानसिक क्रिया है जो किसी समस्या के कारण प्रारंभ होती है एवं उसके अंत तक चलती रहती है।
अन्य परिभाषाएंँ–
1.रॉस के अनुसार–" चिंतन,जब मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पहलू है या मन की बातों से संबंधित मानसिक क्रिया है।"
2.वैलेंटाइन के अनुसार– "चिंतन शब्द का प्रयोग उस क्रिया के लिए किया जाता है, जिसमें श्रृंखलाबद्ध विचार किसी लक्ष्य या उद्देश्य की ओर अविराम गति से प्रवाहित होते हैं।"
Sometimes it is natural for a person to present a problem.In such a situation, he starts thinking of ways to solve that problem.He starts thinking about it. This is how the problem can be solved.The act of thinking or thinking in this way is called 'contemplation'.In other words, thinking is the mental act of thinking which is done by someone starts because of the problem and continues till its end.
Other definitions–
1.According to Ross– "Contemplation, when the cognitive aspect of mental action or mental action relating to the things of the mind."
2.According to Valentine– "The word contemplation is used for an action in which a series of thoughts flow at a constant speed towards a goal or purpose."
चिंतन की निम्नांकित विशेषताएंँ दी गई हैं–
1.विशिष्ट गुण– चिंतन, मानव का एक विशेष गुण होता है, जिसकी मदद से वह अपनी बर्बर अवस्था से सभ्य अवस्था तक पहुंचने में सफल होता है।
2.मानसिक प्रक्रिया– चिंतन,मानव की किसी इच्छा, असंतोष, कठिनाई या समस्या के कारण आरंभ होने वाली एक मानसिक प्रक्रिया होती है।
3.भावी आवश्यकता की पूर्ति हेतु व्यवहार– चिंतन किसी वर्तमान या भावी आवश्यकता को पूर्ण करने हेतु एक प्रकार का व्यवहार है।हम अंधेरा होने पर बिजली का स्विच दबाकर प्रकाश कर देते हैं और मार्ग पर चलते हुए सामने से आने वाली मोटर को देखकर दूसरी तरफ हट जाते हैं।
4.समस्या समाधान– मर्सेल (Mursell) के अनुसार – "चिंतन उस समय प्रारंभ होता है, जब व्यक्ति के समक्ष कोई समस्या उपस्थित होती है और वह उसका समाधान खोजने का प्रयास करता है।"
5.अनेक विकल्प– चिंतन की सहायता से व्यक्ति अपनी समस्या का समाधान करने हेतु अनेक उपायों पर विचार-विमर्श करता है। अंत में, वह उनमें से एक का प्रयोग करके अपनी समस्या का समाधान करता है।
6.समस्या समाधान तक चलने वाली प्रक्रिया– इस प्रकार चिंतन एक पूर्व और जटिल मानसिक प्रक्रिया मानी जाती है,जो समस्या की उपस्थिति के समय से आरंभ होकर उसके समाधान के अंत तक निरंतर चलती रहती है।
The following characteristics of thinking are given-
1.Special Quality– Thinking is a special quality of human, with the help of which he is successful in reaching from his barbaric state to a civilized state.
2.Mental Process– Reflection is a mental process initiated by a human being due to some desire, dissatisfaction, difficulty or problem.
3.Behavior for fulfillment of future need–Contemplation is a type of behavior to fulfill a present or future need.We turn on the light by pressing the power switch when it is dark and walking on the road in front Seeing the motor coming from, they move to the other side.
4.Problem Solving– According to Mursell– "contemplation begins when a problem is present in front of the person And he tries to find its solution."
5.Multiple options– With the help of contemplation, a person discusses many ways to solve his problem.Finally, he uses one of them to solve his problem.
6.Problem Solving Process–Thus thinking is considered to be a pre and complex mental process, which starts from the time of occurrence of the problem and continues till the end of its solution.
चिंतन के मुख्य निम्नलिखित सोपान बताए गए हैं–
1.समस्या का आँँकलन।
2.संबंधित तथ्यों का संकलन।
3.निष्कर्ष पर पहुंँचना।
4.निष्कर्ष का परीक्षण।
The following are the main stages of thinking–
1.Problem Assessment.
2.Collection of related facts.
3.Arriving at Conclusion.
4.Testing Conclusion.
I hope the above information will be useful and
important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण
होगी।)
Thank you.
R F Temre
edudurga.com
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