'व्यक्तित्व' अंग्रेजी भाषा के पर्सनैलिटी (Personality) शब्द का हिंदी रूपांतर है। व्यक्तित्व शब्द लैटिन भाषा के 'परसोना' (Persona) शब्द से लिया गया है।मुख्यतः परसोना का अर्थ मुखौटा या नकली चेहरा से है जिसका प्रयोग नाटक के पात्र अपना रूप परिवर्तन करने हेतु किया करते हैं।अतः प्रारंभ में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति की शारीरिक रचना, वेशभूषा और रंग-रूप से लगाया जाता था और जो व्यक्ति अपने बाहरी गुणों के माध्यम से अन्य व्यक्तियों को जितना अधिक प्रभावित कर लेता था उसका व्यक्तित्व उतना ही अच्छा और प्रभावशाली समझा जाता था।किंतु वर्तमान समय में व्यक्तित्व का मूल्यांकन व्यक्ति के समस्त आंतरिक एवं बाह्य गुणों के आधार पर किया जाने लगा है, समाजशास्त्रीय मतानुसार– "व्यक्तित्व उन समस्त गुणों का संगठन है जो कि समाज में व्यक्ति का कार्य तथा पद निर्धारित करता है।"
'Personality' is the Hindi version of the English language Personality. The word Personality is derived from the Latin word 'Persona' Mainly,Persona refers to the mask or fake face used by the characters of the play to change their appearance.Therefore, in the beginning,the meaning of personality was imposed on the person's anatomy, dress and complexion and the person who used to change his appearance.The more he could influence other people through qualities,the better and more effective his personality was considered.It is thought, according to sociological opinion– "Personality is the organization of all those qualities which determine the function and position of an individual in society."
'व्यक्तित्व' के आशय के संबंध में अलग-अलग विद्वानों ने अपने पृथक्-पृथक् विचार पेश किए हैं।कुछ प्रमुख परिभाषाओं का उल्लेख किया जा रहा है जो कि काफी हद तक व्यक्तित्व के अर्थ को स्पष्ट करने में सहायक सिद्ध हुई हैं–
(i).मन के अनुसार– "व्यक्तित्व एक व्यक्ति के संगठन, व्यवहार के तरीकों,रुचियांँ,दृष्टिकोणों, क्षमताओं और योग्यताओं का सबसे विशिष्ट संगठन है।"
(ii).वैलेंटाइन के अनुसार– "व्यक्तित्व जन्मजात और अर्जित प्रवृत्तियों का योग है।"
Different scholars have presented their different views regarding the meaning of 'personality'.It has proved helpful in clarifying–
(i).According to the mind– "Personality is the most distinctive organization of an individual's organisation, patterns of behaviour, interests, attitudes, abilities and abilities."
(ii).According to Valentine– "Personality is the sum of innate and acquired tendencies."
सामान्यतः देखा गया है कि सभी व्यक्ति के व्यक्तित्व में भिन्नता पाई जाती है।व्यक्तित्व अनेक प्रकार के होते हैं। साधारण और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे अलग-अलग भागों में विभक्त किया गया है जो कि निम्नानुसार हैं–
जुंग(C.G.Jung) का वर्गीकरण– जुंग ने यह वर्गीकरण व्यक्तियों के विचारों और भावों के आधार पर किया है।उनके अनुसार व्यक्तित्व तीन प्रकार के होते हैं–
(अ).अंतर्मुखी (Introvert)– जुंग के अनुसार, अंतर्मुखी व्यक्तित्व वे हैं जो अपनी जीवन शक्ति को अंदर ही संचित रखते हैं और आत्म-केंद्रित होते हैं।
(ब).बहिर्मुखी (Extrovert)– जुंग के अनुसार, बहिर्मुखी व्यक्ति अपनी जीवन शक्ति का संचार बाहर की ओर करता है।यह मिलनसार और समाज केंद्रित होते हैं।
(स).उभयमुखी (Ambivert)– ये व्यक्ति जिनमें अंतर्मुखी तथा बहिर्मुखी दोनों श्रेणियों की विशेषताएंँ पाई जाती हैं वे 'उभयमुखी' कहलाते हैं।
व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास उसी समय से प्रारंभ हो जाता है जब वह मांँ के गर्भ में आता है।व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास विभिन्न आयु में क्रमशः होता है।इसे विभिन्न अवस्थाओं में देखें कि व्यक्तित्व के विकास का क्या पैटर्न होता है–
(1).जन्म से पूर्व की अवस्था में व्यक्तित्व का विकास– शिशु का व्यक्तित्व विकास भ्रूणावस्था में ही प्रारंभ हो जाता है।कम उम्र की मांँ के बच्चे के मानसिक रूप से दुर्बल होने की संभावना ज्यादा बनी रहती है।मांँ के द्वारा गर्भावस्था में लिए जाने वाले आहार तथा उसकी संवेगात्मक स्थिति से भी बालक के व्यक्तित्व का विकास प्रभावित होता है।जैसे– गर्भावस्था में यदि माता के आहार में विटामिनB, C और D का आभाव होता है।तब ऐसी स्थिति में बच्चे अधिगम न्यूनता दिखाते हैं।उसी प्रकार यदि गर्भावस्था में गर्भवती स्त्री को प्रायः डांँट-फटकार या ताने सुनने होते हैं।तो इसका प्रभाव भी बालक के व्यक्तित्व पर पूरी तरह पड़ने लगता है।मनोवैज्ञानिकों का यह मानना है कि बालक के विभिन्न प्रकार के संवेग और उचित मानसिक क्षमता आदि का 70% विकास गर्भावस्था में ही हो जाता है।मांँ के द्वारा मद्दपान आदि का भी प्रभाव बालक के व्यक्तित्व विकास पर पड़ने लगता है।
(2).शैशवावस्था में व्यक्तित्व विकास– जन्म के पश्चात 2 या 3 वर्ष तक की आयु को शैशवावस्था कहा जाता है।बालकों के व्यक्तित्व का विकास शैशवावस्था में उसके साथ किए जाने वाली अंतर्किया से पूर्णता प्रभावित होता है।कैटल (Cattle) का मानना है कि इस अवस्था में बालक का व्यवहार अपने माता-पिता एवं भाई-बहनों के व्यवहार से काफी हद तक प्रभावित होता है।इस अवस्था में बच्चा मांँ के ज्यादा करीब होता है। मांँ स्तनपान, थपथपाने,पुचकारने आदि क्रियाओं के माध्यम से कुछ कार्य में आदि क्रियाओं द्वारा अपना स्नेह अपने बच्चे के सामने प्रदर्शित करती हैं।यह सब व्यवहार स्नेह एवं फटकार बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं।फ्रायड एवं अन्य मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि शैशवावस्था का प्रभाव बालक के व्यक्तित्व पर स्थाई रूप से पड़ता है।जैसे– यदि मांँ बच्चे को स्तनपान कराना शीघ्र बंद कर देती है तो ऐसे बच्चों में आगे चलकर निराशा के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।यदि बालक को अनावश्यक रूप से डांँट-फटकार कर सुननी पड़ती है या डराया जाता है तो जिद्दी या बाल अपराधी बनने की संभावना बढ़ जाती है। शैशवावस्था में बच्चे को सिखाये जाने वाले शौच प्रशिक्षण का प्रभाव भी उसके व्यक्तित्व पर पड़ता है।इसी अवस्था में बच्चों के मन में सामाजिक मनोवृत्ति का भी विकास हो जाता है।
(3).बाल्यावस्था में व्यक्तित्व विकास– 2-3 से 13 वर्ष की अवस्था को बाल्यावस्था कहा जाता है।इस अवस्था में बच्चा माता-पिता से स्वतंत्र होने लगता है तथा टोली या गैंग बनाने लगता है।इस अवस्था को बालक के व्यक्तित्व विकास की अहम अवस्था कहा गया है।फ्रायड का मानना है कि बाल्यावस्था में जब व्यक्ति की किसी खास शिक्षा की पूर्ति कुछ सामाजिक प्रतिबंध के कारण नहीं हो पाती है तो वैसी इच्छाएंँ चेतन से अचेतन में जाकर पूरी तरह संग्रहित हो जाती हैं जहांँ वे सक्रिय रहती हैं और बालक के मन में एक ग्रंथि बन जाती है जो कि व्यक्ति के व्यवहार को निरंतर प्रभावित करती रहती है।बाल्यावस्था में बालक स्वतंत्र रहना चाहता है।स्वतंत्र रहने के प्रयत्न में तादात्मीकरण करता है।तादात्मीकरण के द्वारा वह दूसरों के अनुरूप बनने का प्रयत्न भी करता है।बच्चा अनुकरणशील होता है।बालक अपने माता-पिता या जिसे वह पसंद करता है उसके जैसा बनने का भी पूर्ण प्रयत्न करता है।वह अनुकरण के माध्यम से ही उनके व्यक्तित्व की विशेषताओं नैतिक नियम, सामाजिक गुणों को सीखता है।इस अवस्था में बालक के व्यक्तित्व में सहयोगात्मक भावना का भी विकास होने की संभावना बनी होती है।इस अवस्था में बालक अपने खेल-समूह के साथियों से कई व्यक्तित्व लक्षणों को ग्रहण या सीखता है।केटल इस अवस्था को सर्वाधिक महत्व देते हैं क्योंकि इस अवस्था में विकसित मनोवृतियांँ इस अवस्था में पूर्ण रूप से सुदृढ़ हो जाती हैं।
(4). किशोरावस्था में व्यक्तित्व विकास– किशोरावस्था 13 से 14 साल की आयु से प्रारंभ होकर 18 से 19 वर्ष तक चलती है।इस अवस्था में बालक का शारीरिक विकास पूर्णता की ओर बढ़ते रहता है।इसे कैटल आदि ने व्यक्तित्व विकास का सबसे समस्या पूर्ण तथा तनाव पूर्ण अवस्था कहा है। इस अवस्था में बालक स्वतंत्रता प्राप्ति की इच्छा ही नहीं रखता वरन् विभिन्न मांगें भी प्रदर्शित करत है।इस अवस्था में उसका स्वभाव विद्रोही प्रकृति का हो जाता है एवं अपनी मांग को पूर्ण करने हेतु जबरदस्ती भी करने लगता है।अर्थात जिद्दी हो जाता है।इस तरह आत्म-दृढ़ता, यौन आदि से संबंधित मानसिक समस्या से किशोरावस्था को व्याप्त देखा जाता है।किशोरावस्था में किशोर विपरीत लिंग की ओर आकर्षण महसूस करता है जिससे उसमें प्रेम की भावना भी जागृत होने लगती है।नशीली चीजों का सेवन, आपराधिक व्यवहार, अश्लील हरकतें आदि इस अवस्था में स्पष्ट रूप से होने लगती हैं। यह गुण लड़कों में ज्यादा विकसित होता है जबकि लड़कियांँ पारिवारिक दायित्व प्रेम त्याग आदि का गुण विकसित करके स्वयं को एक सफल गृहिणी के रूप में विकसित करने का प्रयत्न करती हैं।
व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारकों को निम्नांकित प्रकार से विभक्त किया जा सकता है–
(1).जैविकीय कारक– व्यक्ति का व्यक्तित्व विभिन्न प्रकार के Biological Factors से प्रभावित होता है।सभी व्यक्तित्व दूसरे से रंग-रूप, बनावट, भार,कद काठी, भार तथा स्वरूप के दृष्टिकोण से भिन्न होता है।ये सभी Biological Factors के माध्यम से ही संभव होता है।
(2).शारीरिक संरचना– शरीर की रचना और व्यक्तित्व में संबंधों का अध्ययन करने पर यह मालूम हुआ है कि दोनों में घनिष्ठ संबंध है।जिसके अंदर व्यक्ति की लंबाई, शरीर की बनावट, रंग आदि प्रमुख हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं।यदि व्यक्ति के शरीर की संरचना में दोष पाया जाता है तब शरीर में हीन भावना तथा मनोवैज्ञानिक विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
(3).शरीर रसायन– Body Chemistry तथा Personality में घनिष्ठ संबंध है,Body and Brain के विभिन्न केंद्रों में होने वाले Camical changes,व्यक्ति को पूरी तरह से प्रभावित करते हैं।Eg-Blood Suger तथा Glucogen में बदलाव Chemical Reaction पर निर्भर करता है।यदि रासायनिक क्रियाएंँ निरंतर रूप से नहीं होती हैं तब Muscles में Glucogen की कमी हो जाएगी एवं व्यक्ति में थकान तथा सुस्ती देखने को मिलेगी।इस तरह यदि Digestion की क्रिया सामान्य रूप से नहीं होगी तो व्यक्ति की पाचन शक्ति पूरी तरह से कमजोर हो जाएगी तथा व्यक्ति चिड़चिड़ा एवं दुर्बल हो जाएगा।
(4).बौद्धिक योग्यता– प्रत्येक व्यक्ति की बौद्धिक योग्यता अलग-अलग होती है।इस मानसिक योग्यता का व्यक्ति के व्यवहार, चिंतन कार्यों पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है।
(5).वातावरणीय कारक– वातावरण में विद्यमान अनेकों कारक हैं जो कि व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करते हैं, जे.बी वाटसन (J.B Wastson) का यह कथन कि मुझे छोटे बच्चे दे दिए जाएंँ और उन्हें मैं वातावरण के प्रभाव से डॉक्टर, वकील या चोर बना सकता हूंँ, वातावरण के महत्व एवं प्रभाव को दर्शाता है।वातावरण से संबंधित कारकों को दो भागों में विभक्त किया गया है–
(i).भौतिक वातावरण– इसके अंतर्गत जलवायु,भूमि कृषि आदि आते हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं।जब बालक जन्म लेता है तब वातावरण में आने पर भी वह बालक इससे प्रभावित होता है।
(ii).सामाजिक वातावरण– सामाजिक वातावरण में परिवार, पड़ोस, विद्यालय, आदि आते हैं जो कि आयु के साथ-साथ बालक के व्यक्तित्व को पूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं।
व्यक्तित्व के मापन को तीन प्रकार की विधियों में विभक्त कर सकते हैं जो कि निम्नांकित हैं–
(1).आत्मनिष्ठ या व्यक्तिगत विधियांँ– इन विधियों के द्वारा हम व्यक्ति संबंधी सूचना उसी व्यक्ति से या उसके मित्रों अथवा संबंधियों से प्राप्त कर लेते हैं।इन विधियों का आधार उसके लक्षण,अनुभव, उद्देश्य, आवश्यकता, रुचियांँ और अभिवृत्तियाँ आदि होती हैं।वह इनके माध्यम से सभी सूचनाएंँ प्रदान करता है।इस विधि के अंतर्गत निम्न प्रविधियांँ आती हैं–
(i).आत्मकथा– इस विधि के द्वारा अध्ययन किए जाने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व गुणों को कुछ शीर्षकों में विभाजित किया जाता है, जिसके माध्यम से वह अपने अनुभवों, उद्देश्यों, प्रयोजनों, रुचियों और अभिवृत्तियों का विवरण के आधार पर निश्चित मनोवैज्ञानिक निष्कर्ष निकालता है।किंतु इस विधि में कुछ कठिनाइयांँ भी होती हैं।
(ii).व्यक्ति-वृत्ति इतिहास– इस विधि के अंतर्गत हम वंशानुक्रमीय एवं वातावरण संबंधी तत्वों का अध्ययन करते हैं, जो कि व्यक्ति के जीवन को पूरी तरह प्रभावित करते हैं।यह विधि मुख्य तौर से आत्मकथा पर निर्भर करती है।इसमें विषयी के द्वारा बताए गए वृतांत के अलावा परिवार, इतिहास, आए, चिकित्सा पद्धति, पर्यावरण एवं सामाजिक स्थिति आदि से भी सूचनाएंँ एकत्रित किए जाते हैं।इस विधि का प्रयोग प्रायः असाधारण व्यक्तियों के अध्ययन हेतु किया जाता है।
(iii).साक्षात्कार विधि– इस विधि में साक्षात्कारकर्ता विषयी के आमने-सामने बैठकर बातचीत करते हैं।साक्षात्कार विधि में साक्षात्कार लेने वाले मनोविज्ञानी विषय के प्रेरकों, अभिवृतियों तथा लक्षणों का मूल्यांकन करते हैं।साक्षात्कारकर्ता में विषय को प्रभावित, सम्मोहित एवं गुमराह करके उसकी वास्तविकता का पता लगाने का विशेष गुण होना चाहिए।
(iv).सूची विधि या प्रश्नावली विधि– इस विधि में विषयी के समक्ष एक प्रश्नावली पेश की जाती है जिसके अंतर्गत 100 से लेकर 500 तक प्रश्न निहित होते हैं।इसके उत्तर हांँ या न से संबंधित रहते हैं।यह विधि व्यक्तित्व मापन में सर्वाधिक उपयोग की जाती है।विषयी प्रश्नावली को पढ़ता जाता है और अपने उत्तरों को स्पष्ट करता जाता है।इनका प्रयोग व्यक्तित्व एवं सामूहिक दोनों ही रूपों में किया जाता है।
(2).वस्तुनिष्ठ विधियांँ– ये विधियांँ इस तथ्य पर आश्रित होता है कि उसका प्रत्यक्ष व्यवहार अवलोकनकर्ता को कैसा लगता है? ये विधियांँ भी बुद्धि, रुचि एवं अभिरुचि को आधार मानकर क्रियाशील होती हैं।इसके प्रतिपादकों का विचार यह है कि व्यक्तित्व को समझने हेतु विषयी को जीवन के पर्यावरण में रख कर देखना चाहिए जिससे कि उसकी आदतें, लक्षण और चारित्रिक विशेषताएंँ प्रकट हो पाएं।वस्तुनिष्ठ विधि के प्रयोग की विभिन्न विधियांँ निम्न हैं–
(i).नियंत्रित निरीक्षण– इस विधि का प्रयोग मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला में ही संभव होता है क्योंकि पर्यावरण एवं विषयी को नियंत्रण में लेकर कार्य करना सरल नहीं होता है।इसमें विषय को कमरे में अकेला बैठा कर कोई कार्य करने हेतु दे दिया जाता है तथा उसकी क्रियाओं, हाव-भाव और प्रक्रिया का अवलोकन इस रूप से किया जाता है कि विषयी निरीक्षणकर्ता को देख न पाए।वर्तमान समय में विषयी के व्यवहार को चलचित्र के द्वारा भी नोट किया जाता है।इस प्रकार से संपूर्ण व्यक्तित्व का मूल्यांकन होता है।
(ii).क्रम-निर्धारण मापनी– इसके अंतर्गत गुणात्मक व्यवहार का अवलोकन करते हैं।इसमें एक लंबी रेखा के नीचे खंडशः कुछेक विवरणात्मक विशेषण या वाक्यांश लिखे रहते हैं।इसके एक सिरे पर वाक्यांश की चरम सीमा होती है और दूसरे पर विपरीत गुणों की चरम सीमा होती है।क्रम निर्धारक मापनी पर लक्षणों को चिन्हित करते हैं, जिससे यह मालूम हो जाता है कि अमुक व्यक्ति में वह गुण किस सीमा तक मिलता है।
(3).प्रक्षेपण विधियांँ– यह विधि व्यक्तित्व परीक्षण की सर्वाधिक उपयोगी विधि है।क्योंकि अविष्कार के प्रश्न पूर्णतः स्पष्ट होते हैं जहांँ व्यक्ति के जान-बूझकर झूठ बोलने की संभावना बढ़ जाती है ऐसी स्थिति में इसका प्रयोग काफी उपयुक्त होता है।इस विधि में व्यक्ति का कुछ स्पष्ट उद्दीपन प्रस्तुत किया जाता है तथा उसके प्रति होने वाली प्रतिक्रिया का विश्लेषण कर व्यक्तित्व का मापन किया जाता है।व्यक्तित्व मापन हेतु मनोवैज्ञानिकों ने कई प्रकार की प्रक्षेपण विधि का वर्णन किया है।
प्रमुख प्रक्षेपी विधियांँ निम्न हैं–
(i).शब्द साहचर्य परीक्षण।
(ii).रोर्शा स्याही धब्बा परीक्षण।
(iii).विषय आत्मबोधन परीक्षण।
(iv).वाक्य पूर्ति परीक्षण।
I hope the above information will be useful and
important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण
होगी।)
Thank you.
R F Temre
edudurga.com
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