संक्षेपण का अर्थ– 'संक्षेपण' से तात्पर्य–'छोटा कर देना' होता है। 'संक्षेपण' अंग्रेजी के 'प्रेसी'(Precis) शब्द का हिंदी रूपांतर होता है।हिंदी भाषा में इस हेतु 'संक्षेपीकरण', 'संक्षिप्त लेख' आदि शब्दों का भी प्रयोग बहुतायत से किया जाता है, 'संक्षेपण' शब्द अधिक सार्थक और भाव व्यंजक है।
किसी मूल लेख, पत्र-व्यवहार एवं भाषण को वास्तविक तथ्यों सहित सुनियोजित तरीके से पेश करना ही 'संक्षेपण' कहलाता है। संक्षेपण में अप्रासांगिक असंबद्ध, पुनरावृत्त और अनावश्यक बातों का त्याग और सभी आवश्यक, उपयोगी एवं मूल्य तथ्यों का प्रवाहपूर्ण व संक्षिप्त संकलन किया जाता है।
वास्तव में 'संक्षेपण' एक स्वतः पूर्ण रचना है।उसे पढ़ने के बाद मूल विवरण को पढ़ने की कोई जरूरत नहीं रह जाती है।सामान्यतः संक्षेपण में किसी विस्तृत विवरण अथवा पत्र- व्यवहार की समस्त बातों को अत्यंत संक्षिप्त और क्रमबद्ध रूप में रखा जाता है।संक्षेपण के द्वारा कम से कम सार्थक शब्दों में ज्यादा से ज्यादा विचारों, भावों और तथ्यों को पेश किया जाता है। इसमें मूल की कोई आवश्यक बात छूटने नहीं पाती, अनावश्यक बातों को छोड़ दिया जाता है एवं मुख्य सार्थक बातों को ही रखा जाता है।अतः 'संक्षेपण' किसी बड़े ग्रंथ का संक्षिप्त संस्करण, बड़ी मूर्ति का लघु अंकन और बड़े चित्र का छोटा चित्रण होता है।पाश्चात्य लेखकों का कथन है– "संक्षिप्तता ही वाग्विदग्धता की आत्मा है।"
प्राचीनकाल से ही संक्षेप-कला का अत्यधिक महत्व रहा है। उस समय प्रत्येक विषयों को कंठस्थ करना होता था।अतः हमारे महर्षियों ने विचारों की अभिव्यक्ति हेतु सूत्र-शैली का आविष्कार किया था।'सूत्र' का अर्थ है – "कम शब्दों में प्रस्तुत किया गया ऐसा वाक्य या पद जो अधिक अर्थ प्रकट कर सके।" वे सूत्र सरलता एवं सहजता से कंठस्थ कर लिए जाते थे।व्याकरण आचार्य पाणिनिकृत 'अष्टाध्यायी' वेद, उपनिषद, गीता और जैनियों का प्रसिद्ध ग्रंथ 'तत्वार्थ-सूत्र' सूत्र-शैली में हैं।
आधुनिक वैज्ञानिक-युग में मानव का जीवन अति व्यस्त होता जा रहा है।अब उसके पास इतना वक्त नहीं रहा कि वह विस्तृत विवरणों को पढ़ सके।अतः बड़े-बड़े पदाधिकारी, व्यापारी, संपादक, समालोचक आदि के लिए संक्षेपण का बड़ा महत्व माना जाता है।जिनके पास समय का अभाव है, तो वे चाहते हैं कि बड़े-बड़े उपन्यासों, नाटकों, महाकाव्यों के संक्षिप्त संस्करणों का स्वाध्याय करके साहित्य का पूर्ण रसास्वादन करें।
अब हिंदी, राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन हैं। समस्त शासकीय कार्य हिंदी में किया जाता है अतः विद्यार्थियों को संक्षेपण कला में कुशल होना चाहिए।संक्षेपण एक प्रकार का मानसिक प्रशिक्षण है।इसके माध्यम से छात्र-छात्राएंँ विस्तृत विवरण को संक्षिप्त करना सीखते हैं।वास्तव में संक्षेपण 'गागर में सागर भर देने' की कला है।इससे छात्रों में शब्द- संयम,भाव- संयम, एवं चिंतन-संयम की क्षमता उत्पन्न होती है।अतः संक्षेपण-कला व्यावहारिक जीवन हेतु परम आवश्यक एवं उपयोगी है।इससे मानसिक चिंतन में स्पष्टता, सुरुचि व्यवस्था, दृढ़ता और एकाग्रता के गुणों का विकास भी होता है।
कुशल संक्षेपण में निम्नांकित गुणों का होना अति आवश्यक होता है–
1.कुशाग्र बुद्धि– कुशल संक्षेपक हेतु कुशाग्र बुद्धि एवं शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता अति आवश्यक होता है।उसमें गुढ़ स्थलों का अर्थ एवं भावों के गर्म को समझने, महत्वपूर्ण भागों को ग्रहण करने व अनावश्यक को छोड़ने की तीव्र बुद्धि का होना आवश्यक होता है।
2.भाषा और अधिकार– कुशल संक्षेपक में शब्दों का पर्याप्त भंडार होना चाहिए।उसे समानार्थक शब्दों, मुहावरों, कहावतों एवं व्याकरण का अच्छा ज्ञान होना भी जरूरी होता है।
3.सरल, स्पष्ट और प्रसाद-गुण पूर्ण शैली– कुशल संक्षेपक उसे माना जाता है जो अपने स्वयं के विचारों को सरल स्पष्ट व ओज गुण शैली में प्रकट कर पाए।इस संबंध में उसे चैपमैन के इस कथन को हृदयंगम करना चाहिए– "जो कुछ लिखेंं, स्पष्ट लिखो।" अस्पष्ट लिखना भाषा के लिए महान संकट होता है।
4.संक्षिप्ता और क्रमबद्धता– संक्षेपक में विस्तृत बातों को संक्षिप्त और क्रमबद्ध रूप में रखने का गुण होना चाहिए जिनसे वह मूल के समान ही संक्षेपण को अत्यंत प्रभावशाली बना पाए।इसके अलावा संक्षेपक की स्मरण शक्ति तीव्र होनी चाहिए जिससे वह किसी भी भाषण को सुनकर या अवतरण को पढ़कर उसे संक्षिप्त और प्रवाहपूर्ण तरीके से अभिव्यंजित कर पाए।वास्तव में संक्षेपण हमारी बौद्धिकता की कसौटी है।यह वह उत्कृष्ट कला के समान है जिसके माध्यम से संक्षेपक 'भाव अमित अति थोरे' की युक्ति को चरितार्थ करता है।
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope the above information will be useful and important. )
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
edudurga.com
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