भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में सैकड़ों लोगों ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया। अनगिनत बलिदानों के बाद आज हमारा यह देश स्वतन्त्र रूप से निर्विघ्न विकास की सीढ़ियों पर अग्रसर है। भारत के अन्य राज्यों की भाँति मध्यप्रदेश राज्य के लोगों ने स्वतन्त्रता आन्दोलन के महासंग्राम में आदिवासी क्रान्तिकारियों ने अपनी महती भूमिका निभाई है।
मध्यप्रदेश राज्य के कुछेक जिलों को अंग्रेजी सेना ने अपने कब्जे में ले रखा था। सिवनी, होशंगाबाद, नरसिंहपुर, दमोह तथा सागर आदि अंग्रेजों के चंगुल में थे। तत्कालीन समय पर कुछेक राज्य एवं रियासतें अंग्रेजों के वफादार थे एवं चाटूकारी किया करते थे, किंतु उनकी सेना के सिपाहियों ने जैसे ही 1857 की क्रान्ति का बिगुल सुना तो उन्होंने तत्काल ही आन्दोलन हेतु अपनी सहमति जताई और सहायता हेतु आगे आए।
मध्यप्रदेश के वे स्थान जहाँ पर क्रान्ति की ज्वाला ने विकराल रूप ले लिया था वे सागर, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, ग्वालियर, झाँसी, भोपाल, मंदसौर आदि थे।
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अवन्ती बाई मण्डला जिले के रामगढ़ की रानी थी जिन्होंने अपनी आन-बान-शान से मातृभूमि के प्रति अपनी वीरता एवं साहस का उत्कृष्ट परिचय दिया। वे अत्यन्त योग्य, साहसी एवं कुशल महिला थी। वे अपने राज्य का उचित ढंग से संचालन करती थीं। उस समय समय ब्रिटिशों की हडप नीति चरम सीमा में थी। 1858 को अंग्रेजों की सेना ने रामगढ़ को दोनों ओर से घेर लिया एवं आकृमण कर दिया। रानी ने देखा कि वह सभी ओर से घिर चुकीं हैं और अंग्रेजों के द्वारा पकड़ा जाना तय है तो उन्होंने पकड़े जाने से अच्छा स्वयं के द्वारा मृत्यु को उचित समझा और तलवार से अपनी छाती मे घोंप कर हँसते हुए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया।
मालवा के प्रथम शासक कहे जाने वाले राजा बख्तावरसिंह जिन्होंने ब्रिटिश सेना को मात दी थी। स्वतन्त्रता आन्दोलन में इनका अति महत्वपूर्ण योगदान रहा है। संसार में गद्दारों की कमी नहीं है, वे अपने ही साथियों के छल-कपट एवं गद्दारी के कारण पकड़े गए। इंदौर में क्रूर अंग्रेजों ने बख्तावरसिंह को बेरहमी से फाँसी पर लटका दिया।
रानी दुर्गावती के वंशज कहे जाने वाले राजा शंकर शाह एवं उनके नौजवान पुत्र रघुनाथ शाह का बलिदान अविस्मरणीय है। इन्होंने ब्रिटिश सेना के खिलाफ बगावत करने की योजना बनाई। किन्तु कार्य के प्रारम्भ के पहले ही अंग्रेजों को इस योजना की खबर मिल गई और दोनों को हिरासत में लेकर उन पर मुकदमा चलाने का नाटक किया गया। सितम्बर 1857 को इन दोनों अर्थात पिता-पुत्र राजा शंकर शाह एवं रघुनाथ शाह को अंग्रेज अत्याचारियों ने तोप से उड़ा दिया।
सतना जिले के ठाकुर रणमतसिंह ने भी अंग्रेजों के खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने सैन्य संगठन कर ब्रिटिशों पर आक्रमण कर दिया एवं अंग्रेजों की एक टुकड़ी का सफाया किया। अंग्रेजी हुकूमत ने 1859 में रणमतसिंह को गिरफ्तार कर लिया गया और फाँसी दे दी गई।
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महाराज छत्रसाल के वंशज कहे जाने वाले दिमान देसपत बुंदेला ने भी अंग्रेजी सेना को कड़ी चुनौतियाँ दी। तात्या टोपे की सहायता हेतु इन्होंने हजार बन्दूकची भी भेजे थे। देसपत की शक्ति बहुत अधिक बढ़ गई। बुंदेला को पकड़ने के लिये ईनाम भी रखा था। 1862 में ब्रिटिश षड़यन्त्र से बुंदेला को मार दिया गया।
वीर सेनानी टंट्या ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में अपनी महती भूमिका अदा की थी। इस कार्य में उनके साथियों ने भी अपनी पूरी सहभागिता दी। टंट्या ने कई बार ब्रिटिश सरकार को अपने दहशत से कांपने मे मजबूत कर दिया था। ब्रिटिश सरकार ने षड्यंत्र रचकर टंट्या को गिरफ्तार कर लिया और सन् 1886 मे फाँसी पर चढ़ा दिया।औ
महादेव शास्त्री भी एक प्रखर राष्ट्रभक्त थे। उन्होंने नाना साहब पेशवा के पत्रवाहक बनकर क्रान्ति की जानकारी अन्य सैनिकों तक पहुँचाने का कार्य कर देश की स्वतन्त्रता हेतु अहम भूमिका निभाई था। महादेव शास्त्री की गतिविधियों की खबर जब ब्रिटिशों को मिली तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और अन्य वीर सेनानियों की तरह बेरहमी से फाँसी पर लटका दिया।
ब्रिटिश सरकार की 'भील कोर' नामक सैन्य टुकड़ी थी, जिसमें खाज्या नायक एक सिपाही थे। खाज्या बड़वानी के क्रान्तिकारी नेता भीमा नायक से मिले जो कि रिश्ते में उनके बहनोई लगते थे यहीं से इन दोनों की जोड़ी बनी जिन्होने भीलों व गोंड की सामूहिक सेना बनाकर निमाड़ या बुराहनपुर क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध सेना खड़ा कर दिया। अंग्रेजों की हड़प-नीति के कारण खाज्या नायक और भीमा नायक ने अपनी विद्रोहात्मक गतिविधियाँ आरंभ कर दी। खाज्या नायक एवं भीमा नायक के साथ आदिवासी समाज की बहुत सारी महिलाएँ एवं पुरुषों ने मिलकर अंग्रेजों से लोहा लिया। इन दोनों का स्वतन्त्रता आन्दोलन में बहुमूल्य योगदान रहा है। खाज्या को सन् 1860 में अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया और भीमा को सन् 1867 मे बन्दी बना लिया गया।
इस तरह से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम आन्दोलन में मध्य प्रदेश के कई स्वतन्त्रता सेनानियों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देश की स्वतन्त्रता प्राप्ति में अपनी अहम भूमिका निभाई।
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण
होगी।)
Thank you.
R F Temre
edudurga.com
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